रक्त सेवा मानव सेवा Mega Blood Donation Camp by Vihangam Yoga On 28th Oct Every Year

रक्त सेवा मानव सेवा !!





























































रक्त दान-जीवन रक्षा
रक्त को शरीर का मूल्यवान तत्व माना जाता है। रक्त मानव शरीर में अनेक प्रकार से सहयोग प्रदान करता हुआ उसकी रक्षा में विशेष सहायता करता रहता है। शरीर के निर्माण में अनेक तत्वों का योगदान होता है। उन तत्वों में अनेक धातुओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मूल्यवान धातुओं में रक्त का भी एक स्थान है। ये शरीर के मौलिक उत्तक तत्त्व कहलाते हैं। शरीर के मूलभूत रचनाओं में यह विशेष सहयोग प्रदान करता है। जैसा कि हम जानते हैं मानव शरीर के अन्दर जो रक्त होता है वह रक्त भोजन से अवशोषित पोषक तत्वों को संग्रहीत करके समस्त ऊतकों में वितरित करता है। साथ ही यह आॅक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में ऊतकों तक आॅक्सीजन ले जाता है। यह शरीर के विभिन्न भागों से व्यर्थ पदार्थों को उत्सर्जन-अंगों तक ले जाकर उनका निष्कासन करवाता है। यह जल-संवहन के द्वारा शरीर के ऊतकों को सूखने से बचाता है और उन्हें नम एवं मुलायम भी रखता है। रक्त शरीर के द्रवोें को तथा ऊतकों के परासरणीदाब को सामान्य बनाए रखता है। रक्त शरीर में परिसंचरण करते हुए एक अंग को दूसरे से सम्बन्ध बनाए रखता है। रक्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से उत्पन्न हाॅर्माेन्स का वहन कर उन्हें यथास्थान पहुँचाता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों तक स्राव (हाॅर्मोन्स) उत्पन्न करने वाले पदार्थों की पूर्ति रक्त ही करता है। रक्त हाॅर्मोन्स एवं विटामिन्स का एक अंग से दूसरे अंग तक संवाहन करता है और उन्हें उनके लक्ष्य अंग तक पहुँचाने का कार्य भी करता है। रक्त समस्त शरीर में ताप का समान वितरण करके शरीर के तापक्रम का नियन्त्राण करता है। रक्त शरीर के अंगों की कोशिकाओं की मरम्मत करता है तथा कोशिकाओं के नष्ट हो जाने पर उनका नव-निर्माण भी करता है। रक्त टूटी-फूटी तथा मृत कोशिकाओं को यकृत और प्लीहा में पहुँचाता है, जहाँ वे नष्ट हो जाती हैं। रक्त शरीर रोगजनक जीवाणुओं तथा हानिकारक विषों से जीवाणु-भक्षण क्रिया द्वारा तथा एन्टीबाॅडी एवं एन्टीटाॅक्सिन उत्पन्न करके रक्षा करता है। इस प्रकार रक्त श्वेत रक्त कोशिकाओं के द्वारा बैक्टिरियल संक्रमण का प्रतिरोध करता है।
रक्त अपने आयतन एवं विस्कोसिटी में परिवर्तन लाकर ब्लड-प्रेशर पर नियन्त्राण रखता है। रक्त अपने प्रकृति प्रदत्त स्कन्दन या थक्का बनने के गुण के द्वारा रक्तस्राव को रोककर जीवन की रक्षा करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि रक्त के द्वारा विभिन्न आवश्यक कार्य सम्पादित होते हैं। इस प्रकार रक्त दान देकर इन समस्त कार्यंे के सम्पादन में हम अपना सहयोग करते हैं जो मानव जीवन रक्षा के लिए आवश्यक होता है।मानव जीवन की रक्षा समाज की एक विशेष सेवा मानी जाती है। इस जीवन रक्षा में हम रक्त की महत्ता को समझकर रक्त दान की महान सेवा से जुड़ सकते हैं। रक्त दान के महत्व को जानने के पूर्व आइए हम जानते हैं रक्त धातु के विषय में। यह क्या है एवं इसका महत्वपूर्ण कार्य क्या है।
भारतीय आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार धातुओं को सात वर्गो में विभाजित किया गया है।
तत्रौषां सर्वधातूनामन्नपानरसः प्रणियिता।सप्तभिर्देहधातारो धातवो दिविध पुनः। यथास्वभग्निभिः पांक यान्ति किट्टप्रसादवत्।। रसाद्रक्तं ततो मांस मांसान्मेदस्ततोऽस्थि च। अस्थनो मज्जा ततः शुक्रं शुक्राद्गर्भः प्रसादजः।। रसाद्रक्तं ततो मांस मांसन्मेदः प्रजायते। मेदेसाऽस्थि ततो मज्जा मज्ज्ञः शुक्र तु जायते।।  

1. रस 2. रक्त3. माँस 4. मेद 5. अस्थि6. मज्जा 7. शुक्र

धातु निर्माण की प्रक्रिया एवं अवधि:-

हम जो आहार ग्रहण करते हैं उस आहार का सर्वप्रथम पाचन होता है। पाचन होने के बाद रस का निर्माण होता है। पुनः पाँच दिन तक उसका पाचन होकर रक्त का निर्माण होता है। पुनः पाँच दिन बाद रक्त से मांस उसी पाँच-पाँच दिन के अन्तर भेद से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा, मज्जा से अन्त में वीर्य बनता है। वीर्य निर्माण में लगभग 40 दिन का समय लगता है। प्रथम परम्परा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज ने भी इसकी महत्ता को उजागर किया है। सद्गुरुदेव बताते हैं कि भोजन से बना हुआ तत्व जब पक्कवाशय से शुद्ध होकर रस, रक्त, मांस, मेदा, अस्थि से वीर्य बन जाता है तब वह सारे शरीर के स्नायु तन्तुओं को सरल बलवान बना शरीर की कान्ति और सौन्दर्यता का विकास करता है। इसी महत्ता को वैज्ञानिक भी बताते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 800 सौ ग्राम रक्त बनता है। 800 सौ ग्राम रक्त से लगभग वीस ग्राम वीर्य बनता है। जिसे मूल्यवान धातु कहा जाता है।
आयुर्वेद के आधारभूत सिद्धान्त ग्रन्थ के अनुसार यदि देखा जाय तो धातुओं के विषय में विशेष जानकारी हमें प्राप्त होती है। आयुर्वेद सिद्धान्त के अनुसार धातुः रस रक्त मांस मेद अस्थि मज्जा शुक्र प्रधान महाभूत जल तेजस् पृथ्वी पृथ्वी वायु (अस्थि निर्माण) अग्नि जल आकाश (छिद्र खोखलापन) जठराग्नि (पाचक-अग्नि) से जो भोजन का पाचन होता है उसी क्रिया के फलस्वरूप इन धातुओं की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस पाचक अग्नि (कपहमेजपअम मद्रलउमे) से भोजन दो भागों में बंट जाता है- सार और किट्ट (मल)। इनमें सार भाग ही व्यान वायु की सहायता से सारे शरीर में पहुंचता है, जिससे रस, रक्त आदि धातुओं का निर्माण और पोषण होता है अर्थात् भोजन के सार भाग से सबसे पहले रस धातु का निर्माण होता है, रस से रक्त, रक्त से मांस, मांस से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा, मज्जा से शुक्र का निर्माण और पोषण होता है। दोषों की तरह धातु भी शरीर में एक निश्चित मात्रा में रहती है जब इनमें विषमता आती हैं, तो शरीर में विकार उत्पन्न होते हैं।
इन धातुओं में विषमता दोषों की विषमता से आती है। जब दोष प्रकुपित होकर किसी धातु को प्रभावित करता है, तो रोग की उत्पत्ति होती है। चूंकि दोष धातु को दूषित करता है, अतः धातु को दूष्य (दूषित करने वाला) कहा जाता है। जिस धातु के दूषित होने से रोग की उत्पत्ति होती है, वह रोग उसी नाम वाला कहलाता है। जैसे- रस के दूषित होने से रसज रोग, रक्त से रक्तज रोग, मांस से मांसज रोग, मेद से मेदोज रोग, अस्थि से अस्थिज रोग, मज्जा से मज्जा गत रोग, तथा शुक्र से शुक्रज रोग।

रक्त का अर्थ:-

मानव रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है। यह एक ऐसा जीवन द्रव्य है जिस पर प्राणियों का जीवन निर्भर करता है। शरीर के सभी कार्य इसी पर ही आधृत हैं। रक्त शरीर में रक्त वाहिनियों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक धारा-प्रवाह बहता रहता है।

  • रक्त कोशिकाओं के प्रकार-
रक्त में मुख्यतः तीन प्रकार के कोशिकाएँ पायी जाती है।

1. लाल रक्त कोशिकाएँ/इरिथ्रोसाइट्स। 2. श्वेत रक्त कोशिकाएँ/ल्यूकोसाइट्स।3. बिंबाणु या प्लेट्लेट्स/थ्राॅम्बोसाइट्स।

रक्त परिसंचरण में लाल रक्त कोशिकाओं की जीवन अवधि लगभग 120 दिन होती है जिसके पश्चात् ये नष्ट हो जाती है।
  • हीमोग्लोबिन-
हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में विद्यमान उनका मुख्य घटक होता है, जो आॅक्सीजन के संवाहन का कार्य करता है। हीमोग्लोबिन प्रोटीन का एक अत्यधिक जटिल एवं संलिष्ट रूप है, जिसमें 90 प्रतिशत ग्लोबिन (प्रोटीन) तथा 6 प्रतिशत हीमेटिन नामक आयरन युक्त पिगमेन्ट रहते हैं। यही कारण है कि हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए आयरन अनिवार्य है।
  • श्वेत रक्त कोशिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स:-
श्वेत रक्त कोशिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स लाल रक्त कोशिकाओं की अपेक्षा बड़ी होती है, इनका व्यास लगभग माइक्रोमीटर होता है परन्तु इनकी संख्या लाल रक्त कोशिकाओें की अपेक्षा कम रहती है। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति के रक्त में ये 4000से 11.000 प्रति घन मिमी. रहती हैं। परन्तु जब शरीर में कोई संक्रमण होता है तब यह संख्या बढ़कर 25,000 प्रति घन मिमी. तक पहुँच जाती है।
श्वेत रक्त कोशिकाओं का प्रमुख कार्य रक्त में आये विजातीय पदार्थों एवं जीवाणुओं को निगलकर या उन्हें नष्ट करके शरीर की रक्षा करना है। इस भक्षण कार्य में इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।
  • प्लेट्लेट्स:-
ये लाल रक्त कोशिकाओं (इरिथ्रोसाइट्स) के आकार की लगभग एक चैथाई आकार की सूक्ष्म कोशिकाएँ होती हैं। इनकी संख्या रक्त में लगभग 2,50,000 प्रति घन मिलीमीटर होती हैं। प्लेट्लेट्स में न्यूक्लियस का अभाव रहता है। इनका रक्त धारा में औसत जीवनकाल 5 से 9 दिन है।
प्लेट्लेट्स या थ्राॅम्बोसाइट्स का निर्माण लिम्फोसाइट्स की भाँति अस्थि मज्जा को हीमोसाइटोब्लास्ट नामक कोशिकाओं से होता है। इनका विशिष्ट कार्य रक्त का थक्का बनाने की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करना है।

  • रक्त वर्ग-
मानव रक्त के चार मूलभूत वर्ग होते हैं 1. ए 2.बी3.ए.बी.4.ओ

ए रक्त वर्ग वाले रोगी को ए तथा ओ रक्त वर्ग वाले दाता का रक्त दिया जाता है। बी रक्त वर्ग वाले रोगी को बी तथा ओ रक्त वर्ग वाले रोगी को दाता ओ रक्त दिया जाता हैं एबी रक्त वर्ग वाले रोगी को किसी भी रक्त वर्ग वाले व्यक्ति का रक्त दिया जा सकता है। अतः इस रक्त वर्ग वाले व्यक्त् िको सर्ववर्ग प्राप्तर्काा अर्थात् सबसे पाने वाले कहा जाता है। ओ रक्त वर्ग के दाता का रक्त किसी भी रक्त वर्ग के रोगी को सुरक्षित रूप से दिया जता सकता है और इसे सर्ववर्ग दाता अर्थात् सबको देने वाला कहा जाता है।

रक्त के कार्य-

1. रक्त शरीर को बल और वर्ण प्रदान करता है और मनुष्य सुखी रहता हैः ‘‘द्विशुद्ध हि रुधिरं बलवर्ण सुखायुषाः’’ (चरक)। सभी धातुओं का सम्यक् पोषण हो तो बल बना रहता है। रक्त तथा रक्त से सभा धातुओं को पोषण मिलता है। शरीर का वर्ण त्वचा में स्थित भ्राजक पित्त के द्वारा उत्पन्न होता है। लोहिता नामक त्वक् में रक्त अधिक रहता है; त्वचा का पोषण भी रस तथा रक्त से होता है। पित्त भी महदंशी में रक्त की तरह तेजोमहाभूत प्रधान होता है। इन सब कारणों से रक्त को शरीर के वर्ण का उत्पादक माना जाता है। रक्त प्राकृत परिमाण में रहे तो जो भी वर्ण होगा वह स्पष्टता प्रगट होगा; उस वर्ण में धूमिलता या मालिन्य नहीं आयेगा।
2. रक्त के कमी होने से शरीर कमजोर हो जाता है और बेहोशी की स्थिति भी बन जाती है।
3. रक्त प्राणवायु को समस्त कोषों तक पहुँचाता है। ‘‘यूनक्ति प्राणिनां प्राणः शोणितं ह्यनुवर्तते’’ इस चरकीय वचन से सिद्ध है। कि रक्त प्राणवायु का प्राणियों से संयोग कराता है। औक्सिजन महदंशों में हीमोग्लोबिन से मिलकर औक्सिहीमोग्लोबिन बनाता है और इसी रूप में औक्सिजन सूक्ष्मतम कोषों तक पहुँचता है।
4. रक्त मांसधातु का; तथा सभी धातुओं का, पोषण करना हैः ‘‘रक्तं वर्ण प्रसादं मांसपुष्टि जीवयति च’’ सुश्रुत के इस वचन से भी यह स्पष्ट होता है। यहाँ वर्ण प्रसादं शब्द से कान्ति (प्नेजनतम) अभिप्रेत है। सुश्रुत ने ही रक्त के कार्यों न ‘धातूनां पूरण’ भी बताया है जो धातुपोषण द्योतित करता है ।
5. ‘‘धातूनां पूरणं वर्ण स्पर्शज्ञानमसंशयम’’ इस वचन से सुश्रुत ने स्पर्श ज्ञान के लिए भी रक्त को श्रेय दिया है क्योंकि त्वक् स्पर्शेन्द्रिय है; मांस की उपधातु त्वक् है; मांसधातु और एतावता त्वक् का पोषण रक्त से बताया है। रक्त त्वक्त्रपोषक होने से त्वचा के कार्य स्पर्श ज्ञान में भी परोक्षरूप में सहायक है।
6.रक्त में (रस रहता है इसलिए) सभी धातुओं के पोषण अंश रहते हैं तथा रक्तकणों के माध्यम से सभी धातुओं को प्राणवायु प्राप्त होती है। अतः ‘रक्तं जीव इति स्थितिः’ कहा गया है।

रक्त दान का महत्त्व

रक्त के इस महान महत्त्व को सद्गुरु सदाफलदेव विहंगम योग संस्थान पूर्ण रूप से समझता है और सतत इस महान सेवा में भी अपना सहयोग प्रदान करते रहता है। प्रत्येक वर्ष सैकड़ों लोग अपना रक्त दान देकर मानव-सेवा के माध्यम से जीवन रक्षा में विशेष सहयोग प्रदान करते हैं। विहंगम योग संस्थान के द्वारा वर्ष में तो अनेक बाद रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जाता है। मुख्य रूप से संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज के जन्मदिन 28 जुलाई को देश-विदेश के विभिन्न स्थानों पर रक्तदान शिविर का आयोजन कर रक्त का दान किया जाता है। यह रक्त दान मानव की जीवन रक्षा में विशेष सहयोग प्रदान करता है। इस रक्त के अभाव में न जाने कितने मानव समय पूर्व ही जीवन को पूर्ण रूप से जी नहीं पाते । समय से पहले ही शरीर छूट जाता है। आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक स्थानों पर हम देखते हैं कि रक्त के अभाव में जीवन रक्षा नहीं हो पाती । रक्तदान की सेवा महान सेवा है क्योंकि इसके माध्यम से अनेक जीवन की रक्षा होती है। वह जीवन किसी अन्य के काम आता है। वह मानव जिसकी रक्षा रक्तदान में किये गये रक्त द्वारा होती है। वह जीवित रह देश की सेवा और अधिक कर पाता है। समाज की सेवा कर पाता है। अपने परिवार की भी सेवा कर पाता है। वह जीवित रह विश्व के लिए भी सेवा कर पाता है। उसके जीवन रक्षा में यह रक्त दान बहुत बड़ा सहयोग प्रदान करता है। आपकी खुशी रक्तदान में है और उसकी खुशाी आपके रक्तदान से प्राप्त जीवन दान से है। उसके परिवार में भी खुशी देने में आपका रक्तदान सहयोग करता है। इस प्रकार अनेक सहयोग आपके माध्यम से रक्तदान करने से हो जाता है।

रक्त दान से लाभ

रक्त दान से अनेक लाभ भी होते हैं। आप स्वयं भी स्वस्थ रहने में इसका लाभ प्राप्त करते हैं और दूसरों को भी स्वस्थ व जीवन जीने में विशेष सहयोग देकर लाभ प्राप्त करते हैं। आइये जानते हैं रक्तदान से क्या क्या लाभ है।
  • मानव सेवा से विशेष संतुष्टी
रक्तदान करने से मानव की एक विशेष सेवा होती है जिससे आपको एक विशेष संतुष्टी मिलती है।मानव धर्म ही है दूसरों की सेवा करना, सहायता करना। यही सेवा, यही सहायता आपको भी समय से सहायता करती है। हार्ट अटैक की समस्या नहीं होती
रक्तदान करने से आप हार्ट अटैक की समस्या से दूर हो जाते हैं। हार्ट अटैक की समस्या का कारण खून का गाढ़ा होना होता है किन्तु जब आप रक्तदान करते हैं तब इससे आपका खून पतला हो जाता है जिससे आपको दिन से संबंधित किसी भी बीमारी के होने की संभावना कम हो जाती है। साथ ही रक्त दान करने से हृदय भी मजबूत रहता है। भविष्य में हृदय रोग की संभावना बहुत कम हो जाती है। रक्तदान के बाद हृदय का संचार अच्छी प्रकार से होने लगता है।
  • आयरन का स्तर नियंत्रित होता है
रक्तदान आपके शरीर में आयरन के स्तर को भी नियंत्रित करता हैै। भोजन के अनियंत्राण से कभी अधिक व कम आयरन की मात्रा हो जाती है जिसमें रक्त दान नये रक्त निर्माण कर आपके आयरन के स्तर को नियंत्रित कर आपको एक सुन्दर स्वास्थ्य प्रदान करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार रक्तदान करने से हमारे शरीर में किसी प्रकार का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि हमारे द्वारा दान किये गये रक्त की रिकवरी हमारा शरीर कुछ ही घंटों में कर लेता है।
  • नये कोशिकाओं का सृजन
रक्तदान करने से न केवल किसी व्यक्ति का जीवन बचता है बल्कि रक्तदाता में नई कोशिकाओं का सृजन भी करता है। नये कोशिकाओं के बनने से शरीर में एक विशेष स्फूर्ति का संचार होता है। शरीर में रोगप्रतिरोधक की क्षमता बढ़ने लगती है।
  • रक्तचाप एवं कोलेस्ट्राॅल नियंत्रित होता है
रक्तदान करने से आपका कोलेस्ट्राॅल कम होता है तथा रक्तचाप भी नियंत्रित हो जाता है। चिकित्सक बताते हैं कि रक्तदान करने से शरीर में रक्तचाप नियंत्रित होने लगता है। अतः शरीर स्वास्थ्य में यह सहयोग प्रदान करता है।
  • नया ताजा एवं स्वच्छ रक्त निर्मित होता है
रक्तदान के बाद कुछ घंटो के अन्दर ही रक्त की पूर्ती हो जाती है लगभव 24 से 48 घंटे में ही रक्त उतना बन जाता है जितना रक्तदान में दिया जाता है। जब दोबारा रक्त का निर्माण होने लगता है तब आपके शरीर में नया,ताजा, स्वच्छ रक्त निर्मित होता है। जो आपके कैंसर जैसे घातक रोग से भी बचाता है। इस नये रक्त में कैंसर से लड़ने की विशेष शक्ति होती हैै। ये नया खून शरीर के सभी विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देता है। जिससे कैंसर जैसी घातक बीमारी होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
  • वजन कम हो जाता है
रक्तदान में अधिक कैलोरी जलती है। इसलिए इससे वजन पर भी नियंत्राण होता है। इससे कोलेस्ट्राॅल एवं रक्तचाप भी सही रहता है। वजन कम करने में रक्तदान विशेष सहयोग करता है। इससे आपको भी लाभ हुआ और आपके साथ अनेक व्यक्तियों को भी लाभ मिला।
  • हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है
उचित नियम से रक्तदान करते रहने से हृदय संबंधी बीमारियों पर काबू किया जा सकता है। हृदय की किसी भी प्रकार की समस्या में रक्तदान सहयोग करता है। हमारे शरीर की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित लाल रक्त कण तीन माह लगभग 120 दिन में स्वयं ही नष्ट हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति जो स्वस्थ हो तथा जिसका हीमोग्लोबिन 12.5 के लगभग व अधिक हो तथा 18 वर्ष से लेकर 55 वर्ष के अवस्था के हो रक्तदान प्रत्येक तीन माह में एक बाद कर सकते हैं।
आपके रक्तदान से रक्त के अन्दर के मूल तत्वों को आवश्यकतानुसार व्यक्तियों को दिया जाता है। किसी को हीमोग्लोबिन की आवश्यकता पड़ती है तो किसी को प्लेट्लेट्स की तो किसी को श्वेत रक्त की, जो भी आवश्यक कोशिकाएं उपयुक्त होती हैं उसे आवश्यकतानुसार दिया जाता है। आपके स्वस्थ रहने से अनेक सामाजिक लाभ हैं।
  • रक्त दान से आपके रक्त की नियमित जांच भी होती रहती है जो आपके लिए आवश्यक भी है।
रक्तदान करने से आपकों एवं आपके परिवार को समय पड़ने पर आपके दाताकार्ड के माध्यम से रक्त भी मिल सकता है। यह लाभ आपके लिए भी है एवं आपके परिवार के लिए भी।
  • हेमोक्रोमाटोसिस में भी लाभ मिलता है
रक्त दान करने से आपको हेमोक्रोमाटोसिस की समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ता। लिवर और पाचन गंथि को भी काफी कम नुकसान पहुंचता है। चिकित्सक कहते हैं कि यदि आपको हेमोक्रोमाटोसिस की समस्या है तो आप रक्त दान कर इस समस्या से दूर होने में अपना सहयोग कर सकते हैं। यह एक स्वास्थ्य समस्या है जिसके अंतर्गत आपका शरीर अतिरिक्त आयरन सोख लेता है। रक्तदान से इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
  • दिल के साथ लिवर भी स्वस्थ रहता है
रक्त दान करने से आपका दिल एवं लिवर दोनों काफी स्वस्थ रहता है। शरीर में जब आयरन की मात्रा बढ़ जाती है तब दिल एवं लिवर का बुरा असर पड़ता है लेकिन जब आप रक्त दान करते हैं तब यह दोनों ही स्वस्थ होता है। इसलिए रक्तदान करना चाहिए।
एक वयस्क में 5-6 लीटर तक रक्त की मात्रा होती है
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति प्रत्येक तीन माह में रक्तदान कर सकता है।
भारत में हर दो सेकेंड में किसी न किसी व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता होती है यह रक्त उन जरूररतमंद की सहायता कर उसे एक नया जीवन दान देती है।

आइये रक्त दान करके समाज के प्रति अपने दायित्यों का पालन कर एक अच्छे देश भक्त बनें। स्वयं का कल्याण करें और दूसरों के कल्याण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करें। रक्त सेवा मानव सेवा है। रक्त दान महा दान है। रक्त दान जीवन रक्षा है। परिवार के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति अपना कर्तव्य निभायें।

ध्यान रहे कि रक्त दान में सहयोग से पहले कुछ सावधानियां भी रखी जाती हैं।

  • आप किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त न हों
  • खुन की मात्रा आवश्यकता से कम न हो
  • कोई बड़ा आॅपरेशन न हुआ हो
  • जाॅन्डिस आपको पीछले 3 वर्षों में न हुआ हो
  • एड्स,कैंसर तथा हेपेटाइटिस जैसी बीमारी न हो

Mega Blood Donation Camp Organised by Vihangam Yoga Community Worldwide on the auspicious occasion of Sant Pravar Shri Vigyandeo Ji Maharaj Birthday Celebration on 28th October Every Year.
अपने जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर संत प्रवर श्री स्वयं रक्तदान करते हुए 🔥
वह हाँथ सदा श्रेष्ठ और पवित्र होते है जो ईश्वर पूजा से कही अधिक मानवता की सेवा के लिये उठे ।क्यों कि मानवता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नही होता ......✍
स्वर्वेद कथामृत के प्रवर्तक सुपूज्य संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज के पावन जन्मोत्सव पर आयोजित प्रतिवर्ष 28 अक्टूबर को विश्वव्यापी रक्तदान शिविर का विशेष आयोजन ।
वृक्ष कबहुँ नहीं फल भखे, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारणें, साधुन धरा शरीर ।।
सन्त होत परमारथी, सहज करें उपकार ।
मेघ वृक्ष सरिता धरा, पर हित इन सब कार ।।
भारत में हर दो सेकेंड में किसी न किसी व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता होती है यह रक्त उन जरूररतमंद की सहायता कर उसे एक नया जीवन दान देती है।
आइये रक्त दान करके समाज के प्रति अपने दायित्यों का पालन कर एक अच्छे देश भक्त बनें। स्वयं का कल्याण करें और दूसरों के कल्याण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करें। रक्त सेवा मानव सेवा है। रक्त दान महा दान है। रक्त दान जीवन रक्षा है। परिवार के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति अपना कर्तव्य निभायें।
वह हाँथ सदा श्रेष्ठ और पवित्र होते है जो ईश्वर पूजा से कही अधिक मानवता की सेवा के लिये उठे ।क्यों कि मानवता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नही होता ...........तो आईये संत श्री विज्ञानदेव जी महाराज के अमृत जन्मोत्सव पर 28 अक्टुबर को स्वर्वेद महामंदिर के आँगन मे मानवता की सेवा के लिये अपने रक्त दान देकर बुझते हुवे दीपक को एक नया रोशनी प्रदान कर अपनी मानवता को धन्य करे........✍
This Video contains a short view of Blood Donation Camp organised by Vihangam Yoga Community Worldwide. In this Video The Progenitor of SWARVED kathamrit "Sant Pravar Shri VigyanDeo Ji Maharaj" himself donating blood on the auspicious occasion of his birthday celebration.
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